दर दर तेरी आस में,
तेरे प्यार की सुअगत में!
चलता रहा,
हसता रहा!
चोर चोरी कर गए,
में मासूम बनता रहा,
देश धरती भूल के,
इंसानियत चुन्गता रहा!
सरकारी किताब थी,
इन्फ्लेशन की मार ही!
आपराध सुजता समाज था,
स्त्री पुरुष पे कलंगो का भार था!
बहरूपियों का जंजाल था,
चिक्ति पुकार थी!
मांगती सर्कार थी,
सब बन गया बाज़ार था!
आत्मा की आवाज़ थी,
माँ की पुकार थी!
में चलने लगा,
हसने लगा!
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